ऐसे पल -पल वो देखती हैं ,
जैसे सागर ने देख लिया ,
कहीं मौत न आ जाए हमको ,
नज़रों ने तो घायल कर ही दिया !
आइना अगर सामने हो , तब भी उनका दीदार हुआ !
अब अपना अक्श दिखे कैसे ये कैसा हमको प्यार हुआ !!
ऐसे पल -पल वो देखती हैं ,
जैसे सागर ने देख लिया ,
Tuesday, January 17, 2012
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी..
Date: 6th January 2012
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी..,
जमीं की मिट्टी ने बताया सच पुराना, खेल खेले थे तुमने वो छुपना-छिपाना.
कभी गिरते थे तो कभी उठते थे, पर अब सारी चोट पुरानी हो गयी.....
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी....,
बरगद की डालियाँ भी कहती है, तुमने यहाँ डाले थे झूले.
पर अब तो बरगद भी झुक गया, वो डाली पुरानी हो गयी,
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी..,
"बाबा" कहता था कोई तो डर जाता था मैं, जाके माँ के आँचल में छुप जाता था मैं.
अब डर भी है, माँ भी है, पर वो बातें पुरानी हो गयी,
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी.....
छोटी सी साइकिल थी, कम थे खिलौने, पर खुश रहता था, न थे कोई रोने.
पर हम भी बड़े हुए, और साईकिल भी सायानी हो गयी,
बात कल की थी , आज पुरानी हो गयी......
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी..,
जमीं की मिट्टी ने बताया सच पुराना, खेल खेले थे तुमने वो छुपना-छिपाना.
कभी गिरते थे तो कभी उठते थे, पर अब सारी चोट पुरानी हो गयी.....
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी....,
बरगद की डालियाँ भी कहती है, तुमने यहाँ डाले थे झूले.
पर अब तो बरगद भी झुक गया, वो डाली पुरानी हो गयी,
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी..,
"बाबा" कहता था कोई तो डर जाता था मैं, जाके माँ के आँचल में छुप जाता था मैं.
अब डर भी है, माँ भी है, पर वो बातें पुरानी हो गयी,
बात कल की थी, आज पुरानी हो गयी.....
छोटी सी साइकिल थी, कम थे खिलौने, पर खुश रहता था, न थे कोई रोने.
पर हम भी बड़े हुए, और साईकिल भी सायानी हो गयी,
बात कल की थी , आज पुरानी हो गयी......
इरादा
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
यूँ यादों ने बदली करवटें तो
इरादा भी उनका रुलाने का था .
गलियों के पत्तो की आवाज़ आई ,
इरादा तो घुंघरू बजने का था ,
फूलों ने फैलाई खुशबु गजब की ,
इरादा तो शहर महकाने का था .
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
हवाएं चली तो ऐसा लगा क़ि ,
इरादा तो कुछ गुनगुनाने का था ,
वादा किया था खुद से ही मैंने ,
इरादा तो बस आजमाने का था .
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
समझ के परे थी वो जन्नत की बातें ,
इरादा तो जन्नत बनाने का था ,
अब भूलेंगे कैसे उन्हें भूलकर हम ,
इरादा तो मिलने -मिलाने का था ,
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
यूँ यादों ने बदली करवटें तो
इरादा भी उनका रुलाने का था .
गलियों के पत्तो की आवाज़ आई ,
इरादा तो घुंघरू बजने का था ,
फूलों ने फैलाई खुशबु गजब की ,
इरादा तो शहर महकाने का था .
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
हवाएं चली तो ऐसा लगा क़ि ,
इरादा तो कुछ गुनगुनाने का था ,
वादा किया था खुद से ही मैंने ,
इरादा तो बस आजमाने का था .
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
समझ के परे थी वो जन्नत की बातें ,
इरादा तो जन्नत बनाने का था ,
अब भूलेंगे कैसे उन्हें भूलकर हम ,
इरादा तो मिलने -मिलाने का था ,
यूँ पलटी किस्मत कि चौंक गए सब ,
इरादा तो सबको हंसाने का था ,
मृत लोकतंत्र
मृत लोकतंत्र (मेरी कविताएँ )
by Saket Mishra on Tuesday, March 1, 2011 at 12:09am
मृत लोकतंत्र
लोकतंत्र को भ्रष्ट बनाने निकली है सरकार,
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
महगाई ने तन को तोडा , जनमानस के मन को तोडा ,
जीवित रहना मुश्किल हो गया , जीने के रस्ते को मोड़ा ,
लंगड़े हुए कृषक व्यापारी , व्यर्थ लगे खेती -व्यापार!
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
जनता का ये कैसा जनमत , जनमत से सब कैसे सहमत ,
बस सोये न कोई भूखा हे ! ईश्वर अब तेरी रहमत ,
बच जाते सब भ्रष्टाचारी , बढता जा रहा भ्रष्टाचार,
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
शर्म नहीं आती है इनको , इनका एक ठिकाना है ,
तिरंगे का अपमान सही बस इनको वोट ही पाना है ,
लाल -चौक पर आतंकियों का सपना करते ये साकार ,
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
Copyright ©All rights reserved at Saket Mishra
by Saket Mishra on Tuesday, March 1, 2011 at 12:09am
मृत लोकतंत्र
लोकतंत्र को भ्रष्ट बनाने निकली है सरकार,
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
महगाई ने तन को तोडा , जनमानस के मन को तोडा ,
जीवित रहना मुश्किल हो गया , जीने के रस्ते को मोड़ा ,
लंगड़े हुए कृषक व्यापारी , व्यर्थ लगे खेती -व्यापार!
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
जनता का ये कैसा जनमत , जनमत से सब कैसे सहमत ,
बस सोये न कोई भूखा हे ! ईश्वर अब तेरी रहमत ,
बच जाते सब भ्रष्टाचारी , बढता जा रहा भ्रष्टाचार,
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
शर्म नहीं आती है इनको , इनका एक ठिकाना है ,
तिरंगे का अपमान सही बस इनको वोट ही पाना है ,
लाल -चौक पर आतंकियों का सपना करते ये साकार ,
हे भारत माता ये तेरी कैसी जय-जयकार ?
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" कुछ तो गलत है"
शायद कुछ तो गलत है कि मैं वहां नहीं,
लोग कहते हैं कि जो सही है, और मेहनतकश है,
वह अपना चाहा सब कुछ पा लेता है ....
पर मैंने सब कुछ नहीं चाहा, लेकिन सबको चाहा.....
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं............
लोग जश्न मनाते हैं ख़ुशी पाने का,
पर हमें ख़ुशी है गम पाने की,
क्या पाया और क्या खोया, सबका हिसाब मैं रखता हूँ....
पर मैंने कुछ खोया, और कुछ पाया....
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं...........
कहते हैं जंग लडूंगा मैं, क्या ये कोई संग्राम है,
फुरसत नहीं है मुझको आज भी बहुत काम है,
आज घर लाया हूँ मैं सोने की चमक तोहफे में,
ये तो बस दिखावा है, आगे बहुत अरमान हैं......
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं...............
जज्बातों की नई कलियाँ खिलाई थी मैंने,
कुछ चढ़ी भगवान को, कुछ झड गयीं......
अभी कुछ आश है वहां मैं पहुचुंगा,
ग़र कोई कश्ती न डूबी बीच की मझधार में,
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं.........
कितने जवाब ढूंढें मैंने सवालों के अब तक,
सबकी नज़र में वे मयखाने की बातें थी,
अगर ऐसी बात होती जिंदगी में मेरी,
तो डूब जाता शर्म से माँ-बाप के दरबार में......
फिर भी कुछ गलत है की मैं वहां नहीं...............
Read my more poetry....click or copy-paste this link to the address bar. http://www.facebook.com/note.php?created&¬e_id=226961573986977#!/note.php?note_id=200423929974075
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लोग कहते हैं कि जो सही है, और मेहनतकश है,
वह अपना चाहा सब कुछ पा लेता है ....
पर मैंने सब कुछ नहीं चाहा, लेकिन सबको चाहा.....
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं............
लोग जश्न मनाते हैं ख़ुशी पाने का,
पर हमें ख़ुशी है गम पाने की,
क्या पाया और क्या खोया, सबका हिसाब मैं रखता हूँ....
पर मैंने कुछ खोया, और कुछ पाया....
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं...........
कहते हैं जंग लडूंगा मैं, क्या ये कोई संग्राम है,
फुरसत नहीं है मुझको आज भी बहुत काम है,
आज घर लाया हूँ मैं सोने की चमक तोहफे में,
ये तो बस दिखावा है, आगे बहुत अरमान हैं......
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं...............
जज्बातों की नई कलियाँ खिलाई थी मैंने,
कुछ चढ़ी भगवान को, कुछ झड गयीं......
अभी कुछ आश है वहां मैं पहुचुंगा,
ग़र कोई कश्ती न डूबी बीच की मझधार में,
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं.........
कितने जवाब ढूंढें मैंने सवालों के अब तक,
सबकी नज़र में वे मयखाने की बातें थी,
अगर ऐसी बात होती जिंदगी में मेरी,
तो डूब जाता शर्म से माँ-बाप के दरबार में......
फिर भी कुछ गलत है की मैं वहां नहीं...............
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