शायद कुछ तो गलत है कि मैं वहां नहीं,
लोग कहते हैं कि जो सही है, और मेहनतकश है,
वह अपना चाहा सब कुछ पा लेता है ....
पर मैंने सब कुछ नहीं चाहा, लेकिन सबको चाहा.....
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं............
लोग जश्न मनाते हैं ख़ुशी पाने का,
पर हमें ख़ुशी है गम पाने की,
क्या पाया और क्या खोया, सबका हिसाब मैं रखता हूँ....
पर मैंने कुछ खोया, और कुछ पाया....
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं...........
कहते हैं जंग लडूंगा मैं, क्या ये कोई संग्राम है,
फुरसत नहीं है मुझको आज भी बहुत काम है,
आज घर लाया हूँ मैं सोने की चमक तोहफे में,
ये तो बस दिखावा है, आगे बहुत अरमान हैं......
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं...............
जज्बातों की नई कलियाँ खिलाई थी मैंने,
कुछ चढ़ी भगवान को, कुछ झड गयीं......
अभी कुछ आश है वहां मैं पहुचुंगा,
ग़र कोई कश्ती न डूबी बीच की मझधार में,
फिर भी कुछ गलत है कि मैं वहां नहीं.........
कितने जवाब ढूंढें मैंने सवालों के अब तक,
सबकी नज़र में वे मयखाने की बातें थी,
अगर ऐसी बात होती जिंदगी में मेरी,
तो डूब जाता शर्म से माँ-बाप के दरबार में......
फिर भी कुछ गलत है की मैं वहां नहीं...............
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